जब सुनहरी किरण छुएगी धरती का पहला छोर, उस क्षण तेजोमय हो झूम उठेगा धरा की कोर कोर उस एक क्षण में नभ, आकाश, धरातल, पाताल सब तल्लीन हो एक ताल पर थिरक उठेंगे।
केसरिया सुनहरी आभा मानों धरती की हो अप्रतिम चीर, नील जल बहती गंगा जैसी निर्मल पवन गगन झील।
आसमान में उस पल पक्षियों का कोलाहल होगा, मानों सैकड़ों घुंघरू बांधे अब नृत्त, नृत्य, नाट्य का प्रचंड संगम होगा।
एक स्वर्णिम मरीचि की राह जोहते सारी विभावरी रत्नगर्भा, नक्षत्रों की चादर ओढ़े ना झपके नयन पल भर भी।
नयी सुनहरी लालिमा की हम सब भी हैं जोहते बाट, कब आएगी वह पावन सुबह भस्म करेगी सब विरक्त विचार।
यह जो कालिमा की बदरी है, घनघोर विपदा छायी है, शूलों के घातक प्रहार से जन मानस में अक्रंद मचाई है,
यह रुदन को दूर हटाने को, जड़ीभूत हो नि:शब्द अचला खड़ी।
मृदंग, ढोल, ताशे, ताल सजा कर, घुंगरू पैरों में बाँध कर, गूंजने के लिए गर्जन भारी चीरती उसकी क्रंदन है,
तांडव अब यह थमना चाहिए, बस✋🏻 बहुत हुआ✋🏻 यह उर्वी की चीत्कार है।