इतना सब होने के बावजूद भी... कैसे हीमत करती हो किसी को अपना मानने की किसी को अच्छा समझने की... किसी पर भरोसा करने की इन्सानियत का सरे आम खून होने पर... आखिर कैसे.... कैसे खुद को समझाती हो..की दुनिया अच्छी है यहां के लोग अच्छे है... वापस कैसे दूसरो से प्यार कर पाती हो... उन्हें प्यार दे पाती हो एक बार तुम सोचो तो घीन तुम्हे भी आयी थी न.. इस दुनिया के लोगो से...इनके मन मै पल रहे सडयंतरो से....फिर कैसे... आखिर कैसे तुम.... प्यार करने की उन्हें छूने तक की हिम्मत रखती हो.. माना कि तुम एक मा हो.... अपने बच्चे को बिना छुए...बिना पुचकारे रहना भी मुश्किल है... पर तुम एक औरत भी तो हो उसका क्या...आखिर कैसे.... माना कि एक पत्नी हो.... तुम्हारे पति से तुम्हे मोहब्बत हो सकती है.... पर क्या तुम्हे उसे देखकर डर नहीं लगता... उसे देखकर तुम्हारा दिल नहीं दहेलता... क्या ये याद नहीं आता कि वो भी एक मर्द है.... आखिर कर तुम एक औरत हो.... कैसे इतना सब्र,इतना इंतज़ार,इतना भरोसा लाती हो.. कैसे तुम अपने आप को संभालती हो.... आखिर कैसे.... माना कि एक बेटी हो तुम... अपने अब्बू से लगाव है तुम्हे... जान छिड़कती हो उनपे पर क्या ...तुम्हे अनपर इतना भरोसा करना सही है! जिस तरह औरतों को नोचा, चिथोरा जा रहा है... आखिर कैसे तुम.... कैसे तुम किसी आदमी पर इतना भरोसा रखती हो... भरोसे का जहा रोज़ खून हो रहा है... वहां आखिर कैसे तुम इतना भरोसा दिखाती हो.... कैसे इतना प्यार बरसाती हो... कुछ भी कहो..... पर आखिर तुम भी एक औरत हो... इतना भरोसा ओर प्यार कहा से लाती हो.... आखिर कैसे इस दुनिया मै रोज़ उठकर भरोसा ओर प्यार डालने की हिम्मत लाती हो..... औरत क्या तुम सच मै इतनी बलशाली हो!।