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Oct 2019
समय की धारा

समय की धारा, सदियों से बस बहती जाए;

न धीमी, न तेज, बस एक धार बहती जाए ।

वक्त की नदी, जो एक धारा, बहती जाए ;

मानव के हिसाब के सुख दुख उसे देती जाए।

मानव न उसे रोक सके, न थाम सके;

न वोह उसे मोड़ सके, न अंजाम दे सके ;

समय की धारा, न किसी के लिए रुकी है ,

न वोह कभी किसी के लिए रुकेगी ।

पर मन चाहता है सुख की धारा लंबी बहे

और दुख की नदी, जल्द से जल्द, चलती बने ।

उमर कटती रहे, घटती रहे, पर समय की धारा;

यह नदी सदा बहती रहे, मुड़के आए न दुबारा ।

इसी लिए, तु, हे मानव, समय के साथ;

बहना सीख, चला अपने पांव और हाथ।

समय होता है बड़ा किम्मती, जैसे एक मोती

हे मानव, जल्द से जल्द जला ले मनमंदिर में ज्योति ।

Armin Dutia Motashaw
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