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Armin Dutia Motashaw
Poems
Oct 2019
खतरनाक खेल
खतरनाक खेल
ओ मेरे मालिक, समझ में न आए तेरा यह खतरनाक खेल
गुंडे बदमाश छड़े चोक मझा लूटे, और निर्दोष जाए जेल !!!
या तो फिर गुंडों की हो जाती है, एक दो दिन में बेल ।
प्रेमी बिछड़ जाते हैं या कभी होता ही नहीं उनका मेल;
कभी रब की बनाई जोड़ीओ के दिल मिलते ही नहीं;
या तो फिर उनके साथ, होता ही नहीं कुछ सही
शादी के बाद मजबुर हो जाते है सोचने के लिए, क्या यही है वही??
तेरी लीला समझ में न आई है, न आएगी कभी; समझने, मै तरस रही ।
माना, हम तेरे हाथो की कतपुटलिया है, पर थक गए नाचते;
बेईमान लोगो, आरामसे सुख सुविधाओं में है राचते;
और बिचारे ईमानदार लोगोंको सताता है संसार, और लोग उन्हें है जांचते
बुरे लोग, भले लोगोंको आग में है झोंकते और खुशी से है नाचते।
मुझे कुछ समझ न आए, इस लिए पूछ रही हूं, यह कैसा है तेरा खेल????
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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