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Armin Dutia Motashaw
Poems
Oct 2019
दिल लगाने की सज़ा
दिल लगाने की सज़ा
यह क्या किया तुने मेरे मालिक, पल भरमे मेरा दिल हो गया पराया ;
उसके बिना बेजान हो कर जी रहा हूं; मेरे ही दिल ने मुझे हराया ।
प्यार हो जाता है यह सुना था; लेकिन इस उलझन में तुने, मुझे क्यू भरमाया
यह दिल अब अपना भी नहीं, और नहीं है उनका, हालात से मै हूं घभराया ।
दिल मुफ्त में दे दिया उनको; ऊपर से सज़ा मिली मुझे, दिल लगाने की
स्थिति बहुत ही बुरी है, इस बेकसूर गरीब मुफलिस बेगाने की ।
कुछ तो बता, पूछ पूछ के थक चुका हूं मैं, ओ मालिक मेरे;
क्या इस दिल लगाने की भी सज़ा होती है दरबार में तेरे ???
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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