Hello > Poetry
Classics
Words
Blog
F.A.Q.
About
Contact
Guidelines
© 2024 HePo
by
Eliot
Submit your work, meet writers and drop the ads.
Become a member
Hawa
Poems
Oct 2019
हक
जिस हक से कल लेकर गई थी,
उसी हक से आज भी ले जाति,
पर नहीं ले गई,
तो अब यह बहाने क्यों और किसके लिए.
मेरे लिए?
या खुद के लिए?
किस हक की तुम बात कर रहे हो?
मुझे तो कभी पता ही नहीं था
कि मेरा कोई हक है तुम पर.
तुमने कभी पता ही नहीं लगने दिया.
हमेशा एक ही डर था
कि कभी तुमसे कोई बात कह दूं और तुम बोल पढ़ो किस हक से कह रही हो मुझे.
अब इस डर को बहाना ही समझ लो.
पर यही डर था हमेशा.
मेरे लिए
और तुम्हारे लिए.
जितने हक से आज तुमने मुझसे यह सारे सवाल पूछ लिए हैं.
काश! कभी उतने ही हक से यह भी जता दिया होता कि कितना हक है मेरा तुम पर.
मेरे लिए नहीं तो कम से कम सच के लिए ही बोल देते तुम.
Written by
Hawa
26/F
(26/F)
Follow
😀
😂
😍
😊
😌
🤯
🤓
💪
🤔
😕
😨
🤤
🙁
😢
😭
🤬
0
272
Please
log in
to view and add comments on poems