Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Sep 2019
तेरे गुण

सुझे न क्या लिखूं, इस लिए बड़ी देर मैंने लगाई;

अब तक हाथ पकड़कर बहुत कविताएं तुने  लिखाई ;

पर ऐसी भी क्या रुसवाई, की खुद के लिए, कुछ न लिखवाया, ओ मेरे साईं ;

आखिर आज, तुने, खुद के लिए, मेरे हाथों से, एक  कविता है लिखवाई

कान्हा तो है नटखट; पर आप क्यों बन बैठेथे हरजाई, यह बात समझ में न आई ;

दुहाई हो दुहाई, मेरे साईं , अब आखिर, आज वो रात अायी;

जब तुने मेरे हाथो से, तेरे लिए, एक कविता लिखवाई।

एक प्रेम भारी रचना, जो तेरे लिए ही लिखी और है गाई ।

प्रेम  आदरभरे वंदन तुझे, ओ गुरु, ओ पिता, ओ साईं ।

खुश हूं आज मैं बहुत; आखिर तुने, तेरे लिए, मेरे हाथों से, एक कविता लिखवाई ।

गुण तेरे अपार, लिख नहीं पाउगी; परबत तु, मै हूं छोटिसी राई ।

तेरी महिमा अपरंपार, बया कर नहीं पाऊ; मुझमें प्रेम की अखंड ज्योत तुने है जलाई;

श्रृद्धा और सबूरी की, अनन्य ज्योति, मेरे जीवन में, तुने ही है जगाई ।

Armin Dutia Motashaw
77
 
Please log in to view and add comments on poems