तेरे गुण
सुझे न क्या लिखूं, इस लिए बड़ी देर मैंने लगाई;
अब तक हाथ पकड़कर बहुत कविताएं तुने लिखाई ;
पर ऐसी भी क्या रुसवाई, की खुद के लिए, कुछ न लिखवाया, ओ मेरे साईं ;
आखिर आज, तुने, खुद के लिए, मेरे हाथों से, एक कविता है लिखवाई
कान्हा तो है नटखट; पर आप क्यों बन बैठेथे हरजाई, यह बात समझ में न आई ;
दुहाई हो दुहाई, मेरे साईं , अब आखिर, आज वो रात अायी;
जब तुने मेरे हाथो से, तेरे लिए, एक कविता लिखवाई।
एक प्रेम भारी रचना, जो तेरे लिए ही लिखी और है गाई ।
प्रेम आदरभरे वंदन तुझे, ओ गुरु, ओ पिता, ओ साईं ।
खुश हूं आज मैं बहुत; आखिर तुने, तेरे लिए, मेरे हाथों से, एक कविता लिखवाई ।
गुण तेरे अपार, लिख नहीं पाउगी; परबत तु, मै हूं छोटिसी राई ।
तेरी महिमा अपरंपार, बया कर नहीं पाऊ; मुझमें प्रेम की अखंड ज्योत तुने है जलाई;
श्रृद्धा और सबूरी की, अनन्य ज्योति, मेरे जीवन में, तुने ही है जगाई ।
Armin Dutia Motashaw