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Sep 2019
जमुनाजी का सुक गया नीर, तेरे वियोगमे कान्हा ;

फिर भी कभी हुआ न तेरा व्रज में  वापस आना ।

राधा वियोग में तेरे बहा न सकी आंसु, बस जी रही थी जहर पी के ;

सोच रही थी, क्या करेगी वो तुझ बिन यु, विरह में जी के !

तेरे चाहने वालों को, यूह न तड़पा ओ कान्हा,

तुझे राधा और मीरा के खातिर, वापिस पड़ेगा आना ।

करेंगे नहीं वो तेरे लिए, मुनिवरो जैसा जप तप ;

ऐ मोहन, क्यू दिखती नहीं तुझे प्रेमिजनो की यह तड़प?

वियोग सहना नहीं है आसान, जाती है वियोगिकी जान

और क्यू देखे जाता है तु ; यू बन के अंजान ???

ऐसे,  प्रेमिजन को तड़पाना अच्छी बात नहीं ;

भगवान हो कर, क्या तु कर रहा है बात सही ???

Armin Dutia Motashaw
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