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Armin Dutia Motashaw
Poems
Jul 2019
उड़ान
उड़ान
मन की उड़ान को रोक न पाऊं,
तेरे बिना जाऊ तो कहां जाऊं
मन मंदिर में बसाया तुझे जो एक बार;
वहां से निकाल न पाऊं; कोशिश की बार बार
ह्रदयमें मेरे, जो बसी है मुहरत उसे निकाल न पाऊं
तेरी प्रीत है जीवन मेरा, जाऊ तो कहां जाऊं ।
दिल में बसे हो, मन में बसे हो, आंखो में बसे हो
कभी तो, मेरी रोती हुई आंखो से, मोती बनके हसे हो ।
कण कणमें समाए हो, दूर कैसे रहूं आपसे ;
प्यार कहां किया जाता है तोल के, माप के ;
सपनों के पंख होते हैं, बेहतरीन, बड़े रंगीन ;
पर वास्तविकता होती है कठोर, बड़ी संगीन ।
उड़ान भर ले लम्बी, तु चाहे जितनी ;
वास्तविकता कठिन होती है उतनी ही ।
मीरा हो या राधा, कृष्ण बसे है उनके तन मन में
दुनिया लूटा दी अपनी उन्होंने; लीन हो गए मनमोहन में ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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