Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jul 2019
कब तक राह निहारू,
कब तक आश लगाए बैठी रहूं ?

समझ में नहीं आता कुछ मुझे,
कब तक चुप बैठ कर सेहती रहूं ?

कहते है सब सबूरी का फल मीठा होता है; मै कब तक युह बैठी रहूं ?

दाता मेरे, तु क्यू नही समझता, आखिर मै भी तो एक इंसान हूं !

बीज बोए, पर वृक्ष का कोई निशान नहीं, अरे, दो चार पत्ते भी उघे नहीं

पेड़ पौधे उघा, धरती को दुल्हन बना, मै अब और कुछ जानू नहीं ।

अगर यूह ही चलता रहेगा तो कोई किसान न रहेगा; उजड़ जाएगी धरा

कृपा कर हे कृपानिधान, संकटमे है बाग, बगीचे और वन, कृपा कर जरा

रण को बना हरियाली भरे खेतखल्यान, आे दयानिधान, तु तो है महान ।

Armin Dutia Motashaw
56
 
Please log in to view and add comments on poems