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Armin Dutia Motashaw
Poems
Jul 2019
कब तक
कब तक राह निहारू,
कब तक आश लगाए बैठी रहूं ?
समझ में नहीं आता कुछ मुझे,
कब तक चुप बैठ कर सेहती रहूं ?
कहते है सब सबूरी का फल मीठा होता है; मै कब तक युह बैठी रहूं ?
दाता मेरे, तु क्यू नही समझता, आखिर मै भी तो एक इंसान हूं !
बीज बोए, पर वृक्ष का कोई निशान नहीं, अरे, दो चार पत्ते भी उघे नहीं
पेड़ पौधे उघा, धरती को दुल्हन बना, मै अब और कुछ जानू नहीं ।
अगर यूह ही चलता रहेगा तो कोई किसान न रहेगा; उजड़ जाएगी धरा
कृपा कर हे कृपानिधान, संकटमे है बाग, बगीचे और वन, कृपा कर जरा
रण को बना हरियाली भरे खेतखल्यान, आे दयानिधान, तु तो है महान ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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