Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jun 2019
यह ख्वाहिशें

एक बिरहन पुकारे......

क्या करू, जाती नहीं दिल से, यह ख्वाहिशें मेरी;

कुछ भी करू, जाती नहीं दूर दिल से, यह यादे तेरी

दिमाग कहता है, हटा दें इन्हे तु, दिल से कर दे दूर;

दिल कहता है, संजो के रख तु इन्हे; कर रहा है मुझे मजबूर

क्या करू, इस कश्मकश में उलझा है दिल, जले मोरा जिया ।

क्या करू समझ न आए, मुझसे रूठ गए हैं मेरे पीया ।

काश मिले उनकी एक झलक, यह ख्वाइश लिए बैठे हैं

आे बिछड़े प्रीतम, तोरी आश लगाए कबसे बैठे हैं

बारिश तन भिजाए; पर दिल में आग लगाए ख्वाइश सजन की

कोयलिया की मीठी कुक भी,  ख्वाइश जगाए मधुर मिलन की।

सावन आया तुम न आए, पिया, कब तक राह निहरू तोरी ।

क्या पूरी होगी कभी, यह दिलो जान की ख्वाइश मोरी ?

Armin Dutia Motashaw
65
   M
Please log in to view and add comments on poems