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May 2019
एक बार

आज चंद्रमा बादलों से झांक रहा था खिल के सोलह शृंगार;

देखती रही उसकी खूबसूरती मै, बार बार लगातार ।

देखकर उसे, आपकी याद आ गई मुझे; दिल धड़कने लगा, बजने लगी सितार;

काश आप भी आ जाते; पुकार रहा है आप को मेरा प्यार ।

हर माह जगाता है चंद्रमा एक नई आश, दिल हो जाता है बेकरार;

ऐसी भी क्या उम्मीद, की होंगे जरूर दर्शन आपके मौत से पहले एक बार

आई और गई कितनी पूर्णिमाएं पर अमावस अब तक गई नहीं एक भी बार;

जो भी हो, पर अब तक, मानी नहीं है मैंने भी हार ।

आपको शायद तरस आ जाए हम पर भी, कभी कभार ।

Armin Dutia Motashaw
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