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May 2019
न ज़िक्र,
न गुफ़्तगू
न दीदार ही होता है,

तुम ही कहो आख़िर
ऐसे भी कहीँ प्यार होता है..

हम ही तड़पते हैं
रात-दिन तेरे लिये,
या फिर तेरा भी
दिल बेक़रार होता है,
तुम ही कहो आख़िर
ऐसे भी कहीँ प्यार होता है..

तुम तो
सो जाते हो सुकूँ से,
और मेरी आँखों में
तेरा इन्तजार होता है,
तुम ही कहो आखिर
ऐसे भी कहीँ प्यार होता है..

न तलब - न तिश्नगी
तुमको मालूम होती है कोई,
और मेरी रूह पे
हर पल तेरा खुमार होता है,
तुम ही कहो आख़िर
ऐसे भी कहीँ प्यार होता है..

तुम तो रहते हो
मशगूल हर वक़्त ग़ैरों में,
दिल मेरा हर लम्हा
तेरे लिये निसार होता है,
तुम ही कहो आखिर
ऐसे भी कहीँ प्यार होता है..

तुम्हेँ मालूम नहीँ
हाल-ए-दिल मेरा,
और मेरा कल्ब
तेरी एक ख़बर को
खाकसार होता है,
तुम ही कहो आख़िर
ऐसे भी कहीँ प्यार होता है..

तुम तो बैठे हो
रक़ीबों की
बज़्म में बन के ग़ज़ल,
और मेरा मन
तेरी आवाज़ को तरसता है,
तुम ही कहो आख़िर
ऐसे भी कहीँ प्यार होता है..

तुम न समझोगे
बन्दगी साँसों की मेरी,
और मेरी धड़कन पे
तेरी चाहत का शोर पलता है,
तुम ही कहो आख़िर
ऐसे भी कहीँ प्यार होता है.

तुम भुला दोगे
हमें अगले ही पल
ये मालूम है हमको,
मग़र मेरी साँसों पे
बस तेरी
यादों का जोर चलता है,
तुम ही कहो आख़िर
ऐसे भी कहीँ प्यार होता है..
Ankit Dubey
Written by
Ankit Dubey  20/M/New Delhi
(20/M/New Delhi)   
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