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May 2019
बेक़रारी बढ़ने
लगी है आज कल,
नींदों से दुश्वारी सी
रहने लगी है आज कल...

समझ आता नहीँ
कि क्या दर्द है मेरा,
बस उज़्र में बदहाली सी
रहने लगी है आज कल..

वो पूछ ते ही नहीँ
हमसे हमारा हाल कभी,
मुझमें उनकी ही
फ़िकरदारी रहने लगी है आज कल..

ज़रा सा उन्हें भी
मालूम होता हाल-ए-दिल,
क्यों सिर्फ मेरे ही दिल में
बेख्याली रहने लगी है आज कल..

वो सोचते भी नहीँ
ख़ामोश रातोँ में मेरा अक्स,
और मेरी रातोँ में
उनकी ही ख़ुमारी रहती है आज कल..

कब तलक यूँ
गुजारूँगा शाम तन्हा ही,
फ़लक तक उनकी ही
रंगदारी रहती है आज कल...

वो घबराते हैँ
मेरा ज़िक्र जुबाँ पे लाते हुये,
मेरी जुबाँ पे उनकी ही
नामदारी रहती है आज कल...

फर्क पड़ता नहीँ उन्हेँ
नामौजूदगी से मेरी,
मेरी प्यास में उनकी ही
तलबगारी रहने लगी है आज कल..

वो तो छोड़ देते हैं
अपनी ज़ुल्फ़ों को आवारा,
उसी फ़िक्र में मेरी
पहरेदारी रहने लगी है आज कल...

रूठे रहते हैँ हमसे
हमको आते नहीँ नजऱ,
रख दहलीज़ पे टकटकी
नज़रों में गमगुसारी
रहने लगी है आज कल.....!!!!!!
Ankit Dubey
Written by
Ankit Dubey  20/M/New Delhi
(20/M/New Delhi)   
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