Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
May 2019
तमाम जुगनू चराग़ हो गये हैँ,
नींदों के मायने जबसे आप हो गये हैँ..

कुफ़्र सारे बेहिसाब हो गये हैँ,
आँखों के दरमियाँ जबसे आप हो गये हैँ..

रह-रह के कौंधती है मुझपे बिजलियाँ,
आसमाँ से ऊँचे मेरे ख़्वाब हो गये हैँ...

फबती नहीँ  रानाइयाँ मुझे शहर की,
रूह की परस्तिश में जबसे आप हो गये हैँ...

आयतें न आरजू कोई करता हूँ मैं ख़ुदा से,
कि इश्क़ में मेरे ख़ुदा भी आप हो गये हैँ..

फ़िक्र-ओ-फ़िगार मेरे लापता हैँ सारे,
तेरे नाम से हम जबसे बदनाम हो गये हैँ..

किसको-किसको न नकार डालूँ मैं,
जबसे हम तेरी बन्दगी को बेताब हो गये हैँ.

न शौक़ परिन्दों सी उड़ानों का रह गया मुझको,
जब से दायरे तेरी बाहोँ के गिरदाब हो गये हैँ.

बन्दगी ख़ुदा की बे-दार सी लगती है मुझे,
हसीं इश्क़ के मायने जबसे आप हो गये हैँ.
Ankit Dubey
Written by
Ankit Dubey  20/M/New Delhi
(20/M/New Delhi)   
101
 
Please log in to view and add comments on poems