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May 2019
ये दौलत-ओ-शोहरत भला किस काम की मेरे,
कुछ देना ही है तो
अपने सुर्ख़ लबों की मेरे होंठो पे एक निशानी दे दो..

ये ताज-ओ-हरम की भला क्या मुझको जरूरत,
कुछ देना ही है तो
बिखरी ज़ुल्फ़ों के साये में लिपटी एक शाम दे दो..

ये दीन-ओ-ईमान की अहमियत भला मैं क्या जानूँ,
कुछ देना ही है तो
उनके गोरे हाँथो पे रची मेहँदी में मेरा नाम दे दो...

ये इत्र-ओ-शबाब का हुनर भला मैं क्या जानूँ,
कुछ देना ही है तो
उनके मखमली ज़िस्म की खुशबू में तर हमाम दे दो..

ये आराइश-ओ-रानाइयों का भला मैं लिहाज़ क्यों करूँ,
कुछ देना ही है तो
उनके बाहोँ की नक्काशी में मुझे आराम दे दो...

ये रौब-ओ-रुआब की क़ीमत भला मैं क्या जानूँ,
कुछ देना ही है तो
हर रोज उनसे मुलाकात का मुझको एहतराम दे दो.

ये शोख़ी-ओ-शबनम से भला क्या वास्ता मेरा,
कुछ देना ही है तो
उनकी हसरत में मेरी चाहत का एक अरमान दे दो..

ये इल्म-ओ-हुनर से भला क्या इत्तिफ़ाक मेरा,
कुछ देना ही है तो
उनकी चेहरे पे मुझे सोचकर एक इब्तिसाम दे दो...

ये गुल-ओ-बहार की भला क्या आरजू मुझको,
कुछ देना ही है तो
उनकी साँसों में मेरी साँसों को एक नया आयाम दे दो...
Ankit Dubey
Written by
Ankit Dubey  20/M/New Delhi
(20/M/New Delhi)   
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