अब पहले जैसी बात कहाँ रही होगी वक़्त के साथ शायद तुम भी बदल गयी होगी, बदल गये होँगे उन पैमानों के मायने तेरे और लबों की सुर्खी भी हल्की सी ढल गयी होगी..
ज़ुल्फ़ें रुख़सार पे आकर उतना ही तँग करती हैँ क्या तेरे गालों से होकर लबों को छूने की शरारतें करती हैँ क्या, अब तो शायद गेसुओं की फितरत बदल गयी होगी वक्त के साथ शायद तुम भी बदल गयी होगी...
हवायें खिड़कियों के रास्ते तेरे करीब आती हैँ क्या बदन पे तेरे मखमली फ़ाहों को सहलाती हैँ क्या, अब तो शायद हवाओं को मंज़िल मिल गयी होगी वक्त के साथ शायद तुम भी बदल गयी होगी...
गुलाब अब भी तुझसे उतना ही बैर रखते हैँ देखकर गालों की लाली तुझसे अब भी जलते हैँ, या फिर तेरे जिस्म की रँगत भी तुझ सी ही बदल गयी होगी वक़्त के साथ शायद तुम भी बदल गयी होगी..
क्या हाल है तेरी पीठ के उस काले तिल का तिल पे ठहरे मेरे हज़ार चुम्बनों के असर का, अब तो शायद साँसों की खुशबू भी बदल गयी होगी वक़्त के साथ शायद तुम भी बदल गयी होगी...
क्या अब भी तेरी आँखों पे लोग मरते हैँ रात भर जाग-जाग बातें तेरी करते हैँ, या फिर शहर भर की निगाह बदल गयी होगी वक़्त के साथ शायद तुम भी बदल गयी होगी...
क्या अब भी चूमती हैँ पाँव साग़र की लहरें कोई है जो उम्र भर तेरी एक छुअन को ठहरे, लरजते इश्क़ की सिहरन अब तो बदल गयी होगी वक़्त के साथ शायद तुम भी बदल गयी होगी.
क्या कोई शाम डूब कर तेरे पहलू में अब ठहरती है बिन पिये ही कोई रूह तेरे इश्क़ को तड़पती है, तेरी फ़िराक़ में रहने वालों की कुछ कमी तो हुयी होगी वक़्त के साथ शायद तुम भी बदल गयी होगी..
अब भी चर्चे होते हैं क्या शहर में तेरे लोग मरते हैँ क्या अब भी हुस्न पे तेरे, या फिर रक़ीबों की चाहत अब बदल गयी होगी वक़्त के साथ शायद तुम भी बदल गयी होगी...