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Apr 2019
न जाने कैसे, कब, कुछ रोज़ हमने जिए,
आए, बैठे, मुस्कुराये और चल दिए,

वो कहानी जो सदियों से बाकी थी ज़हन में,
सफ़े स्याही से रँगे, और सब बिखर गए,

मरासिम आँखों के अधूरे बेबाक रह गए,
बस पलकें झपकी, की सब दिए बुझ गए,

हमसायगी की नुमाइश करते तो कैसे,
दिन चार थे ज़िन्दगी के, पर नसीब कम ही हुए,

घटते ही रहे वक़्त-बेवक़्त खुशनसीबी के पल,
बज़्म-ए-ज़िन्दगी खुश थी, नाराज़ हम ही हुए.

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Arvind Bhardwaj
Written by
Arvind Bhardwaj  Chandigarh
(Chandigarh)   
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