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Apr 2019
मृग तृष्णा से कभी बुझती नहीं प्यास
फिर्भी, जीवनभर हम बांधे रखते हैं एक आश।
न जाने, क्यू करते  है हम, इस मृगजल पे विश्वास?
जो कभी नहीं बुझाता तन मन की प्यास।
बन जाते है हम,दूसरों के लिए एक उपहास।
हो जाता है हमारी आकांगशाओ का नाश,
फिर भि बुझती नहीं हमारी अधूरी प्यास।

Armin Dutia Motashaw
78
   Dhimss
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