मृग तृष्णा से कभी बुझती नहीं प्यास फिर्भी, जीवनभर हम बांधे रखते हैं एक आश। न जाने, क्यू करते है हम, इस मृगजल पे विश्वास? जो कभी नहीं बुझाता तन मन की प्यास। बन जाते है हम,दूसरों के लिए एक उपहास। हो जाता है हमारी आकांगशाओ का नाश, फिर भि बुझती नहीं हमारी अधूरी प्यास।