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Armin Dutia Motashaw
Poems
Mar 2019
हरियाली बिना
हरियाली बिना
अब के बरस न कोयल कुकेगी,
न तोते उड़ेंगे, न पंछी, न चिड़िया चेहकेंगी,
अब कभी न बहार आयेगी, न फूल खिलेंगे ।
वोह डालियां, जो फूलों के भार से झुक जाया करती थी, लुप्त हो गई;
अरे पत्ते ही नहीं, तो ठंडी हवा कैसे आयेगी ?
बस, एक बड़ी सी इमारत, बड़ी बड़ी दीवारें दिखेगी ।
जो हरा भरा पेड़ों का परदा था, वहां मानव शक्ले दिखेगी ।
इन पेड़ों के बिना, गिलहरियां अब कैसे और कहां खेलेगी ?
अब न कागा काऊ काऊ करके मेहमानों के आनेकी खबर सुनाएगा ।
ऐसा क्यों होने दिया तूने ओ दाता ?
प्राणवायु की कमी होगी और तापमान बढ़ेगा;
तेरी धरा रो रही है, और मेरा दिल भी है उदास ;
तेरी चुप्पी समझ नहीं आती मुझे, लगाके बैठी थी मै आश ।
अब इन पेड़ों के बिना, यह सब बंदरे भी है बेघर;
कानून अंधा बन जाता है और तु ????
Armin Dutia Motashaw
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Armin Dutia Motashaw
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