Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Mar 2019
हरियाली बिना

अब के बरस न कोयल कुकेगी,

न तोते उड़ेंगे, न पंछी, न चिड़िया चेहकेंगी,

अब कभी न बहार आयेगी, न फूल खिलेंगे ।

वोह डालियां, जो फूलों के भार से झुक जाया करती थी, लुप्त हो गई;

अरे पत्ते ही नहीं, तो ठंडी हवा कैसे आयेगी ?

बस, एक बड़ी सी इमारत, बड़ी बड़ी दीवारें दिखेगी ।

जो हरा भरा पेड़ों का परदा था, वहां मानव शक्ले दिखेगी ।

इन पेड़ों के बिना, गिलहरियां अब कैसे और कहां खेलेगी ?

अब न कागा काऊ काऊ करके मेहमानों के आनेकी खबर सुनाएगा ।

ऐसा क्यों होने दिया तूने ओ दाता ?

प्राणवायु की कमी होगी और तापमान बढ़ेगा;

तेरी धरा रो रही है, और मेरा दिल भी है उदास ;

तेरी चुप्पी समझ नहीं आती मुझे, लगाके बैठी थी मै आश ।

अब इन पेड़ों के बिना, यह सब बंदरे भी है बेघर;

कानून अंधा बन जाता है और तु ????

Armin Dutia Motashaw
67
 
Please log in to view and add comments on poems