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Mar 2019
ऐतबार

किस पे करें हम ऐतबार ? तोड़ा है अपनो ने ही उसे बार बार;

था जिन पे पूरा विश्वास, उन्हों ने ही उसे, बनाया एक व्यापार ।

ऐसा क्या हुआ, की अपनों ने ही ठुकराया हमें लगातार ।

सोचता हूं, पैसों के लिए, रिश्तों को मिटा कर कैसे मिलेगा उन्हें करार

किसी को था अपना अहम प्यारा, उन्हें, अहम को रखना था बरकरार ।

कोई तो गुस्से में आकर, तीर चलाकर; कर गया हमपर, शब्दों का वार ।

आंसु और दर्द, इस नाजुक दिल और जिगर को मिलें बार बार, लगातार ।

पर अब तक हमें, क्यू आदत नहीं हुई, इन अश्कों को पीने की बार बार ?

अब तो दर्द से रिश्ता बना लिया है हमने; शायद खुशी तोड़ना चाहे उसे एक बार !

गीत पूरा होते ही, तोड़ दिए हमने अपने हाथों से ही, अपनी सितार के तार

इतना होने पर भी, सीख न सके व्यापार; शायद इसी लिए मिलती हैं हमें जीवनमे हार ।

जीना तो है ही, जब तक है जान, तो यूहीं जी लेंगे, बिना किए किसी पे ऐतबार ।

Armin Dutia Motashaw
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