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Armin Dutia Motashaw
Poems
Mar 2019
ऐतबार
ऐतबार
किस पे करें हम ऐतबार ? तोड़ा है अपनो ने ही उसे बार बार;
था जिन पे पूरा विश्वास, उन्हों ने ही उसे, बनाया एक व्यापार ।
ऐसा क्या हुआ, की अपनों ने ही ठुकराया हमें लगातार ।
सोचता हूं, पैसों के लिए, रिश्तों को मिटा कर कैसे मिलेगा उन्हें करार
किसी को था अपना अहम प्यारा, उन्हें, अहम को रखना था बरकरार ।
कोई तो गुस्से में आकर, तीर चलाकर; कर गया हमपर, शब्दों का वार ।
आंसु और दर्द, इस नाजुक दिल और जिगर को मिलें बार बार, लगातार ।
पर अब तक हमें, क्यू आदत नहीं हुई, इन अश्कों को पीने की बार बार ?
अब तो दर्द से रिश्ता बना लिया है हमने; शायद खुशी तोड़ना चाहे उसे एक बार !
गीत पूरा होते ही, तोड़ दिए हमने अपने हाथों से ही, अपनी सितार के तार
इतना होने पर भी, सीख न सके व्यापार; शायद इसी लिए मिलती हैं हमें जीवनमे हार ।
जीना तो है ही, जब तक है जान, तो यूहीं जी लेंगे, बिना किए किसी पे ऐतबार ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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