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Armin Dutia Motashaw
Poems
Feb 2019
आप के हवाले
आप के हवाले
अब के बरस बहार यहां न आएगी, न फूल खिलेंगे, न कली खिलेंगी
कोयल भी, नहीं कुहू कुहू करके कुकेगी ; अब यहां चिड़िया कभी न चेहकेगी
छोटी छोटी गिलहरियां अब कहां खेलेंगी ?
पूरी वानार सेना यहां आ कर कोहराम कभी न मचाएंगी ।
अब जब पेड़ ही काटे गए तो बहार कहां से आयेगी ?
जो नीव थे घरकी, चिराग थे मात पिता के, वोही चले गए गगन के उस पार ।
बूढ़े मां बाप को मिलेगा न कंधा अब बेटेका, कौन बनेगा इनका सहारा ?
कल ही दुल्हन बनके जो अाई थी, रुमझुम करते, आज हो गई बिचारी बेवा !
कैसे कटेगी पहाड़ जैसी जिंदगानी उसकी, घूमेंगी अब बिना मांग में भरे सिंदूर ?
एक तो बस बनने वाली थी मां; उस नादान को तो अब, कभी मिलेंगी न बाहें पिता की
छोटी सी गुड़िया को किया था वादा, गुड़िया का, जो अब कभी न आएगी
बच्चे कैसे पढ़ लिख कर होंगे बड़े, यह किसकी है जिम्मेदारी ?
बहन अब राखी न बांध पायेगी, कौन करेगा उसकी रक्षा; डोली कौन उठाएगा उसकी ?
मै तो सो गया, दे कर अमर बलिदानी, भारत माता और मेरा परिवार आपके है हवाले ।
Armin Dutia Motashaw
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Armin Dutia Motashaw
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