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Feb 2019
हिन्दू जो आज के है मुसलमान

अपने देशकी, अपन्नी मातृभूमि की है यह अति दुखभरी दास्तान

खो गया है हमारा विवेक, हमारी सोच और ईमान ।

संकट में डाल के उनके प्राण, माल और जान;

हिंदुओ को  पहले मार मार के बनाया मुसलमान

अब भुल गए खुद की असलियत, बदल गया उनका ईमान;

दुश्मन बन गए खुद के भाई ओ के, अब नये बने यह मुसलमान ।

ज़ुल्म ढालने लगे खुद के भाईयो पर, करने लगे उन्हें परेशान ।

अंग्रजों ने इस जहरीली हवा को दी आग, बढ़ाया तूफ़ान ।

वोह आग अबी तक बुझी नहीं है; फना उसन में हो रहे हैं अनेक संतान ।

अब हर कोई, हिन्दू हो या मुसलमान, है यहां परेशान ।

अपनी ही धरा को, जन्नत को, आज मिटाने चला है इंसान ।

खुद की मातृभूमि में, रह गए पंडित बनके सिर्फ मेहमान ।

भाई जब बन बैठे। एक दूजे के शत्रु, तो हसेगा ही पाकिस्तान ।

सियासत के लिए इंसान ने बेच दिया है उसका ईमान ।

लेने लगे हैं एक दूसरे की जान, करते हैं एक दूसरे को हैरान परेशान ।

सोचो जरा, क्या दोगे जवाब, जब पूछेंगे तुम्हे अब के अल्ला या कल के भगवान  ?

Armin Dutia Motashaw
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