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Feb 2019
झुका हुआ है शर्म से, आज हर शीश

आज दुख और शर्म से झुक गया है, हर भारतीय का शीश ।

पाकिस्तान क्यों पैदा किया गया, इस बात की है रंजिश ।

कब तक रहेंगे चुप; कब तक करेंगे शांति रखने की कोशिश ।

ऐसे तो मै हूं शांतिप्रिय; पर अब मा को चढ़ाने पड़ेंगे शीश ।

दुश्मन हमें कमज़ोर  समझता है, इस बात की है रंजिश ।

याद रहे, यहां प्रताप, शिवाजी बस्ते थे, कभी झुके न जीनके शीश

रानी लक्ष्मीबाई  थी बहादुरी की मिसाल, न्योछावर किए थे प्राण ।

वीर भगत सिंह ने भी हस्ते हुए त्यागे थे अपने प्राण ।

आज साम मानेकशॉ कि लगती हैं कमी, झुक ने न देते भारत माता का शीश

हमने अब तक क्यों चूड़ियां  पेहन रखी है, इस बात की है रंजिश ।

हर आत्मा है जख्मी, आत्मसम्मान है खंडित; उठाओ अपना शीश

चलो मिल कर करें, मुंहतोड़ जवाब देने की कोशिश ।

आत्मा पर न रहे बोज, दिल में भर दो जोश, उठाओ अपना शीश ।

आज छेड़ दी है मैंने, आत्मसम्मान में यह, बिना राग कि, बंदिश ।

Armin Dutia Motashaw
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