धरती भी उस दिन रोयी थी,
जब मानवता ने मुँह मोड़ा था,
अजनमी बच्ची का जिस दिन,
इंसानो ने दम घोटा था।
मानवजाति शर्मसार हुई थी,
पैगंबर, पीर, संत, महात्मा की धरती पर,
जिस दिन मानवता के रखवालों ने बेटे का नाम बढ़ाया था,
जिस दिन वंश का बीज बेटे के नाम करवाया था,
उसी दिन मानवजाति के रखवालों ने 'कोख़ को किराए' पर उठाया था।
धरती उस दिन फूट पड़ी थी अपनी ही विपदा पर,
जब उसकी जनमी संतानो ने उसका अधिकार छीना था,
जब उसकी ही जनमी संतानो ने उसके बच्चों का दम घोटा था।
मानवता ने इंसान का सर्वोत्तम जनम माना था,
सही गलत की पहचान और भाषा का ग्यान सिखलाया था,
कब धरती की यह संतान वहशी हो गई अंजाने में,
पूछ रही माता जननी हर लड़की की कोख उजड़ने में।
जानवर भी मानवजाति से ज्यादा बुद्धिमान तब हो गए,
जब वंशवाद में मनुष्य ने हत्या की अजनमी बेटीयों की,
जानवर भी मादाओं को नहीं मारते कुनबे में,
अग्यानी है जानवर फिर भी सच यह जानता है,
माता नहीं होगी तो वंश कैसे आगे बढे़गा?
वंश बढ़ाने की कोख ना होगी तो वंशबीज कहाँ अंकुरित होगा।
धरती माँ ने तब जरूर रो-रो के पूछा होगा,
प्रहलाद, राम,कृष्ण की वंश बेला नाम बताओ,
क्या हुआ उनके वंश का और कीरती कहाँ तक रही बताओ,
धरती माँ ने जरूर प्रश्न पूछा यह होगा-
अगर ना होती माता तो क्या जन्म लेते भगवान बताओ?
माँ से निकली मानवता इस धरती की कोख से,
मातृभूमि, मातृभाषा, मानवजाति सब धरती माँ के जाये हैं,
फिर कब और कयों वंश पिता का साम्राज्य बन गया माँ कहा गुम हो गई?
लड़का कब कुलदीपक और लड़का ना जन्मने वाली कब कुलनाशिनी हो गई?
पिता कब वंशज हो गया और माँ न बन पाने वाली कब बाँझ हो गई?
Sparkle In Wisdom
March 2017
#girl power
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