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Jan 2019
महफ़िल भरी थी, फिर भी भीड़ में, एक दिल था अकेला ।

ऐसा भी नहीं है की खूबसूरत नहीं था मेला ।

थी वहां चेहल पहल, समा था बहुत ही रंगीला ।

संगीत था, थी खुशबू, आलम था अलबेला ।

यह दिल करता नहीं फरियाद, पर दुःख अपनोसे ही उसे है मिला;

गम हैं इस बात का की अपनो ने ही, अपना न समझा; इस लिए हो गया वो अकेला ।

केहनेको तो, अपने थे सभी वहां;  ऐसे तो था सब अपनो का ही यह मेला ।

फिर भी न जाने क्यों, अपनो के बीच, था वो बेचारा दिल, बिलकुल अकेला ।

Armin Dutia Motashaw
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   Diya soni
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