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Armin Dutia Motashaw
Poems
Jan 2019
Akela
महफ़िल भरी थी, फिर भी भीड़ में, एक दिल था अकेला ।
ऐसा भी नहीं है की खूबसूरत नहीं था मेला ।
थी वहां चेहल पहल, समा था बहुत ही रंगीला ।
संगीत था, थी खुशबू, आलम था अलबेला ।
यह दिल करता नहीं फरियाद, पर दुःख अपनोसे ही उसे है मिला;
गम हैं इस बात का की अपनो ने ही, अपना न समझा; इस लिए हो गया वो अकेला ।
केहनेको तो, अपने थे सभी वहां; ऐसे तो था सब अपनो का ही यह मेला ।
फिर भी न जाने क्यों, अपनो के बीच, था वो बेचारा दिल, बिलकुल अकेला ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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