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Jan 2019
सपनो के सौदागर है हम

सपनोको, ख्वाहिशों को, कहां होती है लगाम ?

देखने वालों पर होता नहीं कोई इल्जाम ।

सपने देखते हैं हम दिन में, बिन पिए जाम ।

काश सूरत होती मधुबाला जैसी, नहीं ऐसी आम ।

और गीत संगीत में होता हमारा लताजी जैसा नाम।

काश हमभी गुलज़ार जैसी कविता लिख लेते सुबह शाम ।

मिल जाए काश हमें भी अपनी सपनों की मंज़िल, और मुकाम।

दुआ करो यारो हमारे लिए, हो जाए हमारा काम ।

Armin Dutia Motashaw
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