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Riddhi N Hirawat
Poems
Jan 2019
मेरे कागज़ कलम
कौन थी मैं।
क्या हो गयी।
क्यों खो गयी?
कब गयी?
कहाँ चली गयी?
किसके साथ गयी?
क्या कोई साथ गया
या फिर से अकेले ही
ज़मीन पर रेंग गयी?
किसी ने कपड़े फेंके थे
क्या मेरे ऊपर?
अलग सी दिख रही हूँ
बचपन गया। जवानी आयी।
क्या वही जिसका इंतज़ार था?
दर्द हुआ या खुशी हुई?
कितनों के सपने टिके थे
या नहीं भी,
मेरे सपनों संग।
अगर सच्चे थे,
तो वो अब भी
होंगे - वहीं!
क्योंकि मैं फिर
हँस चुकी हूँ।
गिर के उठ गयी हूँ।
पा के मैं रहूंगी लक्ष्य
जीत के मैं
करूँगी सच
वो सपने थे
जो अपनों के
झुके नहीं हैं जो अब भी,
कागज़ पर उतरे
थे जो, कलम से
मेरे ही; कभी।
हे ईश्वर!
Written by
Riddhi N Hirawat
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