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Jan 2019
एक मासूम सी कली

मुर्झा रही है एक नन्हीं सी नाजुक सी, खुशबुदार कली;
खिझा के रूखेपन से, बागबान  की बेरुखी से, वोह जली ।

निष्ठुर तूफ़ान आंधि ने झुकाया उसे बेरहमी से;
कुचला उसे, उसके अपनो ने, बड़ी बेशर्मी से

खिल न सकी वोह, खिलखिलाती थी जो, हर घड़ी ।
समय से पहले मुरझाई,  फूल न बन पाई वोह, हो के बड़ी ।


मुर्झा गई एक मासूम सी, नन्ही सी प्यारी कली बिचारी ।
वक़्त के हाथो, ठोकर खाकर, बेमौत, जिंदा जली ।

Armin Dutia Motashaw
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