तेरे बिन जीना भी क्या जीना; आजा, के दिल ने तुझे हर पल याद किया। न कोई खुशी, न बहार, तेरे बिन बस एक बुत बन के, बेजान जीवन जिया। जान बूझकर जीवन भर खुशी खुशी, तेरी जुदाई का, हसकर जहर पिया ।
हर रात ने, शीतल चांदनी ने भी जलाया; स्वप्नों में भी बुलाया पर स्वप्न ही नहीं आया । स्वप्न आता भी तो कब और कैसे, नींद ने है नहीं मुझे इस सुख से नवाजा । तेरे बिन जीना, क्या खाख है जीना; पल भर हस न पाना, क्या इसे कहते हैं जीना ?