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Nov 2018
कली कली जल रही है, उजड़ रहा है मेरा बाग
पेड़ की डाल पे न कोयल गाए, न बोले काग
दिल में मेरे जल रही है उदासी की आग।

चुनरिया फीकी, उसपे लगे हैं बिरह के दाग़
तुम न आए, आए गए कितने भी फाग
सुना नहीं तूने, बिरहा भरा, मेरा दर्दभरा राग ।

आजा पिया सुना दे वोह मीठा मीठा राग
जिसे सुन के झूमे जिया; और खिल उठे मनका बाग
अब तो आजा, बुझा दे, यह तन्हाई, यह उदासी की आग ।

Armin Dutia Motashaw
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