प्रीत मेरी पावन, जैसे गंगा जल। अति कोमल और अत्यंत निर्मल । प्रीत में, कहा आता है कभी बल; वोह तो है समर्पण, सालो का, न के एक पल।
प्यार हो जाता है तो बस एक पल में। औेर बस जाता है, तन, मन, हृदय में। जनमो का यह नाता, जोड़ता है क्यू विधाता ? और सोचती हूं मैं, क्यों फिर जुदाई देता है दाता ?
प्रीत की रीत है अनोखी, जलता है खुशी से परवाना और दुख में डूब कर, गाता है कोई हृदय स्पर्श गाना। शायर, नशेमे शूमके, लिख देता है नमूनेदार शायरी और कोई लिखता है खुद की डायरी।
"प्रीत किए दुख होए", कहता है प्रेमी, हरएक । फिर भी जलने के लिए तैयार है प्रेमी हरएक । बस देता है हरएक प्रेमी, दुआए प्रीतम को झंखता है वोह अपने प्रीतम के संग, साथ को ।