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Oct 2018
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मोगरे की कली
मुश्क़अफसां
अधखिली।
गुन्चा-ओ-गुल
की कशिश
उन अदाओं में है।।
है वो मासूम सी
और बेहिस है वो।
शोख़ अंदाज़ है
कुछ नज़ाकत भी है।।

अब बशर
कोई ऐसा
कहाँ है यहाँ।
जो सुनता
समझता हो
खामोशियाँ।।
मान लो
कुछ तो है जो
बोहत ख़ास है।
दिल जो घायल
हुआ उसकी
चाहत में है।।

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©deovrat 09.10.2018

मुश्कअफ्शां=spreading fragrance
बेहिस=insensitive
Deovrat Sharma
Written by
Deovrat Sharma  58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)   
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   Deovrat Sharma
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