Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Sep 2018
आशाओं पर जीवित मैं एक प्राणी हूं,
मानव की दुर्बलताओं का हार नहीं।
भूल चुका हूं भूतकाल की बातों को,
है अतीत के सपनों से मुझे प्यार नहीं।
वर्तमान की घड़ियों में मैं उलझा सा,
सुलझाता फिरता हूं मैं उन कड़ियों को।
एक बार की स्मृति कर मैं रोता हूं,
पा जाऊंगा खोई हुई उन लड़ियों को।
रसपान नहीं कर पाया मैं उस मृदु रस का,
जिसका जीवन में मुझको आभास नहीं।
आशाओं पर जीवित मैं एक प्राणी हूं,
मानव की दुर्बलताओं का हार नहीं।
Riya jain
Written by
Riya jain  17/F
(17/F)   
155
   Aslam M
Please log in to view and add comments on poems