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Aug 2018
​ढलते सूरज को फिर से उगते देखा है, लहरों को टकरा कर फिर से बनते देखा है..

बुझे हुए चिराग को पुनः जलते देखा है, मैंने हारे हुए आज को विजयी कल बनते देखा है..

निराश, टूटे हुए मन को  संवरते  देखा है, सोई हुई उमंग में रँग भरते देखा है..

मुरझाई  कली  को  फूल  में  बदलते देखा है, मैंने तेरी आँखों में जीत को चमकते देखा है…



नन्ही चींटी को सौ बार फिसलते देखा है, बार-बार कोशिश करते उसे फिर उठते देखा है..

हारे हुए हौसलों को उड़ान भरते देखा है , मैंने राही को राह में कांटों से निपटते देखा है..

रण छोड़ कर विवश बैठे अर्जुन को देखा है, उसी अर्जुन को महाभारत में विजयी बनते देखा है..

उठ साथी, मन को संभाल और प्रयास कर, क्योंकि मैंने हारे हुए आज में तेरे जीते हुए कल को देखा है..



तेरी माँ को मैंने तुझे याद करते देखा है, छुप-छुप कर तेरे पिता से.. आँख भरते देखा है..

तेरे पिता ने तुझे बचपन में गिरते संभलते देखा है, मैंने उनकी आँखों में स्नेह झलकते देखा है..

जिंदगी को इम्तेहान लेते देखा है, हारे हुए पर लोगों को हँसते देखा है..

लोगों की छोड़ और खुद पर कर यकीन, क्योंकि मैंने तेरे कल में तुझको चमकते देखा है..
Poem
Avanish maurya
Written by
Avanish maurya  17/M/Delhi
(17/M/Delhi)   
295
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