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Aug 2018
देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है

ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है

बे-वजह की रार से कितना लड़े आख़िर कोई

एक मुश्किल से बचे तो दूसरी तय्यार है

हो पराया गर कोई तो दुश्मनी मंज़ूर है

आज अपनों से लड़े तो जीत में भी हार है

अब जहाँ में ख़ून के रिश्ते कहाँ बाक़ी रहे

ख़ून के रिश्तों में बहती ख़ून की अब धार है

बोल मीठे भी कहाँ अब बोलता कोई यहाँ

हर ज़बाँ पे आज केवल साँप की फुन्कार है

दिल दुखाया था जिन्होंने वो पराए तो न थे

आज कैसे मान लें कि उन को हम से प्यार है

कोई भी ऐसा नहीं जो मौत से बच जाएगा

आख़िरी मंज़िल सभी की मौत के उस पार है..
Ghazal
Avanish maurya
Written by
Avanish maurya  17/M/Delhi
(17/M/Delhi)   
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