साहब वक़्त की बंदिश भी बड़ी अजीब होती है, जिसकी जरूरत होती,उससे दूरियाँ ही नसीब होती है,
डर लगता है कि कहीं ये वक़्त हमें मजबूर ना कर दे, हमारे सपनें तोड़ कहीं एक दूसरे से हमें दूर ना कर दे,
आपसे दूर होकर ऐ मेरे हमसफ़र हम हमेशा के लिए टूट जाएंगे, इस वक़्त को कैसे समझाऊ,की बिन साँसे भला हम कैसे जी पाएंगे,
अक़्सर दो प्यार करने वालो से ही ये वक़्त खफ़ा हो जाता है, हम उनके बिना नही रह सकते है,ये वक़्त कहाँ समझ पाता है,
एक कदम चलना उस वक़्त बेहद मुश्किल हो जाता है, जब आपका हमसफ़र आपसे रूठ साथ छोड़ जाता है,
नदी और लहरें भी क्या खूब दोस्ती निभाते है, नदियाँ चुपचाप बहती और लहरें रास्ता बनाते है,
एक दिन वक़्त से हमनें भी पूछा आखिर आप पलभर में क्यों बदल जाते हैं, वक़्त ने बड़ा ही खूबसूरत जवाब दिया,हम तो सिर्फ इंसान को हर परिस्थिति में जीना सिखाते है,
...........जय माता दी............
मायने ये नही रखता की कब परिस्थितियां बदल जाए, मायने तो ये रखता है कि हम हरेक परिस्थिति में सँभल जाए मनीष श्रीवास्तव.......✍