जब था ही मुझे रुलाना तो फिर हँसाने की जरूरत क्या थी, धकेलना था गम के सागर में तो फिर प्यार जताने की जरूरत क्या थी, जब पता था तुम्हे कि आएंगी आँधि मेरे जीवन में, तो फिर इस ज़िन्दगी में वो बाग लगाने की जरूरत क्या थी,
जब थे हम इतने बुरे तो मुझपे हक़ जताने की जरूरत क्या थी, हमने तो आज तक वफ़ा की ही नही,फिर मुझे बेवफा बताने की जरूरत क्या थी, हमने तो अपना एक भी वादा नही किया था पूरा फिर, वो हजार वादे और कसमें खाने की जरूरत क्या थी,
हम तो थे ही गिरे फिर इन आँखों से नजरें मिलाने की जरूरत क्या थी, हमारा दिल तो बहुत बुरा था,फिर हमसे दिल लगाने की जरूरत क्या थी, हमारे लफ्ज़ जब इतने बुरे थे तुम्हारे लिए फिर, फिर इन लफ्ज़ों में वो बात जताने की जरूरत क्या थी....