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Jun 2018
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ज़िस्म की..
आग़ भडक़ती है...
वो बुझ़ भी जाती है।

इश़्क की लौ..
द़िलों में जलती है...
सदा-सदा के लिये।।

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हद़ें तलाश..
ना कर, उसकी...
हयात-ए-फ़ानी में।

अज़ल हैं..
रूह के रिश्ते हैं...
दो ज़हाँ के लिये।।

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©deovrat 28-06-2018
Deovrat Sharma
Written by
Deovrat Sharma  58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)   
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   Deovrat Sharma
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