घाव भर जाते साहब पर निशां रह जाते है, अपने ही दर्द का मतलब सीखा जाते है, जब भी कोई पूछता हमसे कैसे हो जी ? आँसुओ को छिपा हम भी मुस्कुरा देते है,
बड़ी सिद्दत से की थी उनसे मोहब्बत हमने, हर मोड़ पर साथ निभाया था उनका हमने, नजाने क्यों वो लफ्ज़ बदल गए पलभर में जिन लफ्ज़ों को इन होठों पर सजाया था हमने,
लोग चले जाते छोड़कर पर उनकी यादें रह जाते है, जब चाँद होता नाराज़ तो बादल भी गहरे हो जाते है, चेहरे पर कभी भी ना जाना साहब, यहाँ खूबसूरत चेहरे वाले भी चन्द पलो में मुकर जाते है,