हे माँ इस जहां पर अपनी थोड़ी सी कृपा कर दे, फिर से वही खूबसूरत दिल लोगों के सीने में भर दे, ना किसी से द्वेष ,ना किसी से बदले की भावना हो, मिटा के सभी जाति-धर्म को,सभी को एक कर दे,
हे माँ उन सुनी आंखों में फिर से वही ख्वाब भर दे, बिखरे पड़े उन मोतियों को फिर से एक कर दे, जो भी टूट गए है ख़ुद से ही हारकर मेरी माँ, उनकी झोली में माँ खुशियां ही खुशियां भर दे,
हे माँ इस उजड़ी दुनिया को फिर से हैरान कर दे, लेकर अवतार इस दुनिया में,इसे अपने पैरों से तर दे, ना बन सके भले ही फूल हम तेरे चरणों के, हे माँ इन कोमल पैरों से हमारा तिरस्कार ही कर दे, तिरस्कार ही कर दे..........