नज़ारा ज़िन्दगी का हमने बहुत करीब से देखा है,
किसी को रोटी फेकते हुए तो किसी को रोते हुआ देखा है,
और क्या क्या बयां करू साहब इस कलम से,
किसी को ठंड से मरते तो किसी को धूप में जलते देखा है,
मुझे शौख नही है इन कागज के टुकड़ों का साहब,
पर इन आँखों से इसके लिए किसी को मरते देखा है,
आज उन गलियो से गुज़र रहा था तो याद आया साहब,
जहां मेरा बचपन गुजरा,वहां किसी का बचपन मरते देखा है,
दुनिया वही है,लोग भी वही है साहब,
पर यहां पलभर में लोगों को बदलते देखा है,
मुझे शौख नही है महंगे गाड़ियों पर चढ़ने का साहब,
पर इन आँखों से बिन पैर ही किसी को चलते देखा है,
हम हरेक छोटी सी समस्याओं से हार जाते है साहब,
पर किसी को लाख समस्याओं के बाद भी ज़िन्दगी से लड़ते देखा है,
सपना तो मेरा भी था कि मैं चाँद पे जाऊ साहब,
पर इन आँखों से किसी के सपने सड़क पर ही बिखरते देखा है,
क्या खूब है नज़ारा ज़िन्दगी का साहब,
किसी को इस खुले आसमां में उड़ते तो किसी को बंद पिजड़े में ही मरते देखा है।
बंद पिजड़े में ही मरते देखा है....
आज ये आंखे भर गई है साहब पता है क्यों????क्योंकि ज़िन्दगी को बहुत करीब से देखा है।नजाने कितने है इस जहां में जो आज भी कई दिनों तक भूखे सोते है।हमारे पास सबकुछ है फिर भी हम उदास है,परेशान है,बेचैन है....पर ऐसे लाखों मिलेंगे जिनके पास कुछ भी नही है इतना तक कि खाने के लिए हाथ भी नही फिर भी वो मुस्कुराते है...ज़िन्दगी जीने का तरीका इनलोगो से ही सीखा है चाहे कितने भी गम क्यों न हो ज़िन्दगी में हमेशा मुस्कुराते रहो,प्यार फैलाते रहो.....
और जाते जाते किसी ने सच ही कहा है
कोई पत्थर चोट खाकर टूट जाता है
तो कोई चोट खाकर शंकर कहलाता है...
ज़िन्दगी आपकी है आप जैसा चाहो वैसा इसे ढाल सकते है...
तब तक खुश रहिये,मुस्कुराते रहिये...
मनीष श्रीवास्तव. ...........✍