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Mar 2018
थोड़ी और ठेहर जा ये दिल
न जाने राह में रास्ते और जुड़ जाये
मंज़िल को मत कर खबर
खबर को ही मंजिल बना ले।।

गुमसुम सी राते।।
खिड़की से चाँद से वो बातें
शायद अब भी याद करता ये दिल वो चाहत की बरसातें।।।
और वो चोरी छीपे फूलों का ढूंढना ।।।

पर अब कैसे है ये खामोसी ।।।
आँखों में बस यादें।।
क्या फिर से यकीन भरी दुनिया में जाये ?
या फिर याद में ही याद बन जाये।।।
Ravindra Kumar Nayak
Written by
Ravindra Kumar Nayak  30/M/India
(30/M/India)   
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