मुझे मालूम था फिर फिर क्यों जान के भी अनजान रहा काटो को देखता रहा।।। कब फूलों की खुश्बू आयी पता न चला।।।
अब मैं फूलों को ढूंढ रहा हु पर काटे ही काटे नज़र आ रहे है!!! और नज़र से नज़र के मिलने की ख़्वाहिश लिए फिरता धुप में छाव को ढूंढ़ता एक दिल अधूरा सा ज़रा ज़रा।। ।।।