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Mar 2018
मुझे मालूम था
फिर फिर क्यों
जान के भी अनजान रहा
काटो को देखता रहा।।।
कब फूलों की खुश्बू आयी पता न चला।।।

अब मैं फूलों को ढूंढ रहा हु
पर काटे ही काटे नज़र आ रहे है!!!
और नज़र से नज़र के मिलने की ख़्वाहिश
लिए फिरता
धुप में छाव को ढूंढ़ता एक दिल अधूरा सा ज़रा ज़रा।।
।।।
Ravindra Kumar Nayak
Written by
Ravindra Kumar Nayak  30/M/India
(30/M/India)   
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