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Mar 2018
सराबोर था दरिया में ,
पर गुफ्तुगू में सुलगता रहा !
बंद रास्तों के दंगल में,
मैं आरज़ू की खातिर भटकता रहा |

नज़र थी जिस मंज़िल पे,
सफर में उसका सजदा नहीं था |
हुजूम लगा था करीबियों का,
पर करीब कभी कोई अपना नहीं था |

खोकली  बोलियों  के इस जहां में,
वादों के फेरे में सिमटता रहा |
अँधेरी सुनी गलियों में,
मैं रौशनी की आस में भटकता रहा |
Written by
Shubh Shukla
152
 
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