Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Mar 2018
सराबोर था दरिया में ,
पर गुफ्तुगू में सुलगता रहा !
बंद रास्तों के दंगल में,
मैं आरज़ू की खातिर भटकता रहा |

नज़र थी जिस मंज़िल पे,
सफर में उसका सजदा नहीं था |
हुजूम लगा था करीबियों का,
पर करीब कभी कोई अपना नहीं था |

खोकली  बोलियों  के इस जहां में,
वादों के फेरे में सिमटता रहा |
अँधेरी सुनी गलियों में,
मैं रौशनी की आस में भटकता रहा |
Written by
Shubh Shukla
173
 
Please log in to view and add comments on poems