मुझे ये ग़म और ये ख़ुशी दोनों रास है, चलने की आदत है और मंज़िल की तलाश है।
राह में जितने मिले सब अपने हैं, सब ख़ास हैं, मेरी ज़िंदगी छोटी सही पर टुकड़े सबके पास हैं।
जब भी लगा टूटने, सबने समेटा हैं मुझको, उलझा उलझनों में जब जब, सबने लपेटा हैं मुझको, कभी संग हंसे तो कभी संग रोए भी हैं, बहुत से अपने मिले तो कुछ अपने खोए भी हैं।
जानता हूँ ज़िन्दगी है कुछ खोना तो कुछ पाना भी है, सफ़र लम्बा है ज़िन्दगी का और दूर तक जाना भी है, पर ना जाने क्यूँ, आज मेरी आँखें कुछ नम सी लगती हैं, ज़िन्दगी पूरी तो है लेकिन फिर भी कुछ कम सी लगती है।
सबकी रूह, सबका प्यार, सबकी वफ़ा मेरे दिल के पास है, मुझे ये ग़म और ख़ुशी दोनों रास है, चलने की आदत है और मंज़िल की तलाश है।