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Sandeep kumar singh
Poems
Oct 2015
निराश मन
बैठा हूँ आज मै
अपनी नजारे झुकाये,
बस यूं ही मैंने अपनी
यह जिंदगी बिताये,
काश कर पता मै
अब कोई भी उपाए,
जिंदगी मे कभी न राहूँ
मै असहाये।
जिंदगी है जीना पर
कोई रास न आये,
बैठा हूँ अकेला आज
क्यों कोई पास न आये ?
जिंदगी लगाने लगी है बोझ
कैसे इसे समझाऊँ,
नौकरी जब न मिले तो
बैठे-बैठे अब यूं ही मर जाऊँ।
संदीप कुमार सिंह।
Written by
Sandeep kumar singh
Nagaon, Assam
(Nagaon, Assam)
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