Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Oct 2015
बर्फ सी ठंढ़ी हो, या जलता धूप
इन्हे क्या गम है
रहते है ये अपने काम मे
न लोगो की परवाह
न दूसरों का गम
है तो बस हर पल
अपने को खुशियाँ देने की चाहत
और चाहत भी देखो
जो इनको न चाहे
फिर भी अपनी चाहत
अपनी आकांक्षाओ की पूर्ति के लिए
कर रहे है वे
दिन रात मेहनत
अपनी खुशियों को गम मे मिला कर
अपनी खून को पनि बना कर
दिन-रात सभी से लड़कर
ठंढ़ी-गर्मी को भूल कर
निकल पड़ते करने
अपनी चाहत को पूरा
पर वह चाहत भी उनको
हमेशा अधूरा ही मिला ।

-----संदीप कुमार सिंह।
Sandeep kumar singh
Written by
Sandeep kumar singh  Nagaon, Assam
(Nagaon, Assam)   
599
 
Please log in to view and add comments on poems