बर्फ सी ठंढ़ी हो, या जलता धूप इन्हे क्या गम है रहते है ये अपने काम मे न लोगो की परवाह न दूसरों का गम है तो बस हर पल अपने को खुशियाँ देने की चाहत और चाहत भी देखो जो इनको न चाहे फिर भी अपनी चाहत अपनी आकांक्षाओ की पूर्ति के लिए कर रहे है वे दिन रात मेहनत अपनी खुशियों को गम मे मिला कर अपनी खून को पनि बना कर दिन-रात सभी से लड़कर ठंढ़ी-गर्मी को भूल कर निकल पड़ते करने अपनी चाहत को पूरा पर वह चाहत भी उनको हमेशा अधूरा ही मिला ।