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Sandeep kumar singh
Poems
Oct 2015
पिता की उदासी
आज ये उदास है
इसके पीछे जाने क्या बात है
बैठे है ऐसे जैसे
मन में कोई बात है
चेहरे पर ऐसी एक भाव है
मानो अंदर ही अंदर
वे जल रहे है
तड़प रहे है
क्या करे न करे
इसी मे उलझ रहे है
हर तरह की परेशानी से
घिरे है वे, परेशान है
क्यो न हो परेशान
घर परिवार को संभालना
उनकी खुशियों को सवारना
जीवन की हर मुसीबत से
सभी को उभारना
दूसरों की गली बात को सहना
हर दिन, हर पल
अपनी ही जिंदगी को
अपनी किशमत को
हथेली पर रखे, दुनिया से लड़के
थक गऐ है वो
मिली न कामयाबी बस
इसी का दुख है
पिता है वो किसी न किसी का
सायद किसी मुशकील मे है
इसी लिए वो चुप-चाप है
इनके हनथो मे भी
न जाने क्या बात है
रोते है मन में
फिर भी हंसी का भाव है
आज ये उदास है
इसके पीछे न जाने क्या बात है ।
-----संदीप कुमार सिंह।
Written by
Sandeep kumar singh
Nagaon, Assam
(Nagaon, Assam)
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